जरूरी है नया रोजगार गारंटी विधेयक

हालांकि विधेयक में मनरेगा में 100 दिनों के स्थान पर 125 दिन तक और वनवासी क्षेत्रों में तो 150 दिनों तक रोजगार देने का प्रावधान रखा गया है, लेकिन अब उसका वित्तीयन केंद्र और राज्य दोनों सरकारों का दायित्व होगा…
मनरेगा यानी महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम एक अधिकार-आधारित ग्रामीण रोजगार योजना है, जिसे 2005 में अधिनियमित किया गया और फरवरी 2006 से लागू किया गया। यह भारत के प्रत्येक ग्रामीण परिवार को राज्य से भुगतानयुक्त काम की मांग करने का कानूनी अधिकार देता है। इस अधिनियम के तहत, किसी भी ग्रामीण परिवार का 18 वर्ष या उससे अधिक आयु का कोई भी वयस्क सदस्य काम के लिए आवेदन कर सकता है। सरकार पर प्रति वित्तीय वर्ष प्रति परिवार 100 दिनों तक अकुशल श्रम कार्य उपलब्ध कराने की कानूनी बाध्यता है, और यदि लिखित या मौखिक मांग के 15 दिनों के भीतर काम नहीं दिया जाता, तो राज्य को बेरोजगारी भत्ता देना होता है। इस कारण मनरेगा केवल एक कल्याणकारी योजना नहीं, बल्कि कानूनी रूप से प्रवर्तनीय अधिकार है। दुनिया भर में कहीं भी इस स्तर पर रोजगार के अधिकार की कोई योजना नहीं है। अपनी विशालता और कानूनी संरचना के कारण विशिष्ट है। यह योजना करोड़ों ग्रामीण नागरिकों के लिए है और उन्हें रोजगार एक वैधानिक अधिकार देता है। सूखा, कृषि संकट और कोविड-19 महामारी जैसे आर्थिक झटकों के समय इसने आर्थिक सुरक्षा कवच की भूमिका निभाई, जब लाखों प्रवासी श्रमिक गांव लौट आए और इसी योजना पर निर्भर रहे।
इस योजना में कुछ बड़े बदलाव प्रस्तावित करते हुए संसद में विकसित भारत- ग्रामीण रोजगार और आजीविका गारंटी मिशन विधेयक, 2025 (वीबी -जी राम जी) पारित कर दिया गया है और राष्ट्रपति द्वारा अनुमोदन के बाद अब यह विधेयक मनरेगा का स्थान लेगा। जहां सरकार नए विधेयक को विकसित भारत के लिए एक सुधार के रूप में प्रस्तुत कर रही है वहीं विपक्ष इसका पुरजोर विरोध कर रहा है। विपक्ष का कहना है कि सरकार जानबूझकर इस कानून से महात्मा गांधी का नाम हटाकर राजनीति कर रही है। और क्योंकि इस विधेयक का संक्षिप्त नाम वीबीजीआरएएमजी या यूं कहें तो ‘विकसित भारत जी राम जी’ हो जाएगा, विपक्ष को यह रास नहीं आ रहा है। विधेयक के खिलाफ सारी बहस कानून में बदल पर बहस से कहीं अधिक वाकयुद्ध का रूप ले चुकी है। आज आवश्यकता इस बात की है कि इस विधेयक को विस्तार से समझा जाए कि वास्तव में इसके प्रावधान क्या हैं और इससे देश और ग्रामीण भारत को क्या फायदा या नुकसान हो सकता है? 2005 में बनाए गए इस अधिनियम के पीछे सोच यह थी कि ग्रामीण क्षेत्र में लोगों को बेरोजगारी के कारण गरीबी से बचाने के लिए उन्हें आमदनी की गारंटी हो लेकिन इसके साथ ग्रामीण क्षेत्रों में विकास के कार्यों जैसे जल संरक्षण परियोजनाएं, सिंचाई नहरें, ग्रामीण सडक़ें, बाढ़ नियंत्रण संरचनाएं और भूमि विकास से जुड़े कार्य भी किए जा सकें। इस योजना में वित्तीयन की पूरी जिम्मेदारी केंद्र सरकार की थी, क्योंकि इस अधिनियम के पीछे सोच यह थी कि रोजगार एक अधिकार है और वो नहीं मिलने पर सरकार को रोजगार देना अनिवार्य है और कोई भी ऐसा व्यक्ति यदि स्वयं को पंजीकृत करवाए तो सरकार को उसे 100 दिन का रोजगार देना होगा, जिसके तहत उपरोक्त निर्माण कार्यों में उनका उपयोग किया जा सकेगा। समझना होगा कि यह योजना रोजगार की मांग से चलती है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार पिछले सालों में जहां इस योजना में मजदूरी की दर बढ़ा कर उसे आकर्षक बनाया गया है, लेकिन रोजगार के लिए पंजीकृत करने हेतु दिवसों में भारी कमी आई है। इसका अभिप्राय है कि ग्रामीण लोगों को अन्य स्रोतों से अतिरिक्त रोजगार मिलने लगा है जो मनरेगा से अधिक आकर्षक है। ग्रामीणों की आर्थिक स्थिति में भी सुधार हुआ है। आज विकसित भारत बनने का संकल्प दिन प्रतिदिन सुदृढ़ होता जा रहा है। 2005 से अभी तक देश में बहुत बदलाव आ चुका है। ऐसे में सरकार का मानना है कि मनरेगा कानून में भी आमूलचूल परिवर्तन करने की आवश्यकता है।
अब राज्य भी करेंगे फंडिंग : हालांकि विधेयक में मनरेगा में 100 दिनों के स्थान पर 125 दिन तक और वनवासी क्षेत्रों में तो 150 दिनों तक रोजगार देने का प्रावधान रखा गया है, लेकिन अब उसका वित्तीयन अकेले केंद्र सरकार नहीं, बल्कि केंद्र और राज्य दोनों सरकारों का दायित्व होगा। गौरतलब है कि 2005 केंद्रीय राजस्व में राज्य सरकारों का हिस्सा मात्र 32 प्रतिशत था जो अब बढक़र 42 प्रतिशत हो चुका है। 14वें वित्त आयोग ने राज्यों के हिस्से को यही कह कर बढ़ाया था ताकि वे कल्याणकारी का भार वहन कर सके। लेकिन नरेगा राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम जो पहले ही बन चुका था, उसमें राज्यों पर इसका भार नहीं डाला जा सकता था। 2009 में बन गया था नरेगा से मनरेगा : हालांकि राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी एक्ट (नरेगा) 2005 में पास हुआ था और इसे 2006 में लागू किया गया था ताकि रोजगार के अधिकार को कानूनी मान्यता मिल सके, लेकिन कार्यक्रम का नाम नरेगा, इसका नाम 2009 में तब की यूपीए की सरकार ने इसका नामकरण महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम कर दिया था। और अब जब इस योजना का नया रूप संसद ने प्रस्तावित किया है, और देश के विकसित भारत के संकल्प के बीच, नाम में बदलाव होना भी स्वाभाविक था, जो इत्तेफाक से देश के आराध्य भगवान राम के नाम से मिलता-जुलता है। इसी बात का विपक्ष विरोध कर रहा है।
खेती के लिए श्रमिक भी मिलेंगे : मनरेगा का उद्देश्य बेरोजगारी के दिनों में आय सुरक्षा देना था, परंतु यदि कृषि मौसम में श्रमिक मनरेगा की ओर आकर्षित रहते थे। ऐसे में खेतों में श्रमिकों की कमी के चलते मजदूरी लागत बढ़ जाती है, जिससे किसान की लागत में वृद्धि हो जाती है और खेती की प्रतिस्पर्धात्मकता घटती है। इस नए विधेयक में इस समस्या का समाधान निकाला गया है और रोजगार गारंटी कार्यक्रम में खेती के लिए आवश्यक 60 दिनों में इस कार्यक्रम को स्थगित रखने का प्रावधान रखा गया है। इसके साथ ही अब इस कार्यक्रम के अंतर्गत कार्यों में भी समय के साथ बदलाव करते हुए अब उसमें आज की आवश्यकता के अनुरूप, जल सुरक्षा, ग्रामीण इंफ्रास्ट्रक्चर, रोजी-रोटी से जुड़ा इंफ्रास्ट्रक्चर और खराब मौसम की घटनाओं को कम करने को शामिल करने के साथ-साथ, इन योजनाओं को पीएम गति शक्ति नेशनल मास्टर प्लान के साथ भी जोड़ा गया है।
भ्रष्टाचार पर लगाम : मनरेगा का सबसे बड़ा दोष यह था कि तमाम प्रयासों के बावजूद इसमें भ्रष्टाचार नहीं रुक रहा था। ग्राम पंचायत और खंड स्तर पर भ्रष्टाचार के कारण बड़ी मात्रा में सरकारी धन की लूट हो रही थी। ऐसी कई योजनाएं ध्यान में आती थी जिसमें कागजों पर ही तमाम निर्माण हो जाते थे जिनका धरातल पर कोई अस्तित्व ही नहीं होता था। नए अधिनियम में भ्रष्टाचार को बाहर रखने के लिए प्रावधान रखा गया है कि नई प्रौद्योगिकी का उपयोग करने का प्रावधान है, जिसमें लेन-देन के लिए बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण, योजना निर्माण एवं निगरानी के लिए भू-स्थानिक (जियोस्पेशियल) प्रौद्योगिकी, वास्तविक समय में निगरानी हेतु मोबाइल एप्लिकेशन-आधारित डैशबोर्ड तथा साप्ताहिक सार्वजनिक प्रकटीकरण प्रणाली को शामिल किया गया है। गौरतलब है कि इससे पहले प्रधानमंत्री आवास योजना में प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हुए उसमें भ्रष्टाचार पर बड़ा अंकुश लगाया गया है। उसी तर्ज पर प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करते हुए रोजगार गारंटी योजना में भी भ्रष्टाचार को रोका जा सकेगा। देश में कई विशेषज्ञों द्वारा मनरेगा का विरोध लंबे व्यू से हो रहा था। इसके चलते कृषि और उद्योग क्षेत्र में श्रमिकों की कमी हो रही है। हालांकि कृषि में तो श्रमिकों की कमी की समस्या को कुछ हद तक नए अधिनियम में हल करने का प्रयास हुआ है, लेकिन अभी कुछ चुनौतियां बरकरार हैं।
डा. अश्वनी महाजन




