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‘कांतारा चैप्टर 1’ का बॉक्स ऑफिस पर धमाल, जानें कैसी है फिल्म

मुंबई। ऋषभ शेट्टी की फिल्म ‘कांतारा चैप्टर 1’ सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है। फिल्म ने पहले ही दिन बॉक्स ऑफिस पर दमदार कलेक्शन किया है। फिल्म ने पहले ही दिन करीब 60 करोड़ रुपए की कमाई कर ली है, जो अनुमानों से कहीं अधिक है। 30 देशों में रिलीज हुई इस फिल्म ने ओवरसीज मार्किट में भी ठीकठाक शुरुआत की है। विदेशों में भी फिल्म ने 20 करोड़ से अधिक का कलेक्शन कर लिया है। माना जा रहा है कि फिल्म ने पहले ही दिन वर्ल्डवाइड 100 करोड़ रुपए का कलेक्शन कर लिया है। दशहरे पर रिलीज हुई यह फिल्म बुराई पर अच्छाई की जीत का शास्वत संदेश देती है। फिल्म हमें पर्दे पर विजुअल ट्रीट के रूप में एक ऐसी दुनिया में ले जाती है, जहां संस्कृति, परंपराएं और रहस्यवाद मिलकर एक सम्मोहक सिनेमाई अनुभव रचते हैं।

क्या है फिल्म की कहानी?

फिल्म की कहानी की शुरुआत होती है कदंब वंश के एक आततायी शासक से, जिसकी सत्ता-पिपासा असीमित है। उसके भीतर इतनी भूख है कि वह जमीन का एक-एक टुकड़ा अपने अधीन कर लेना चाहता है। लालच और ताकत का मोह उसे इस हद तक अंधा कर देता है कि वह मानवता को कुचलने से भी नहीं हिचकता। उसकी नजरें कांतारा की दैवीय और अलौकिक दुनिया पर भी पड़ती हैं। मगर कांतारा के दिव्य संरक्षक पंजुरली दैव, गुलिगा दैव और वराह रूप (जो विष्णु के वराह अवतार से प्रेरित हैं और जंगल की अनियंत्रित ऊर्जा व उसके संरक्षण का प्रतिनिधित्व करते हैं), उसकी राह में अडिग खड़े हो जाते हैं। परिणामस्वरूप, शासक अलौकिक शक्तियों के कोप का शिकार बनता है।

इस संघर्ष में उस अततायी शासक के वंशज तो बच निकलते हैं, लेकिन वैमनस्य की चिंगारी बुझने के बजाय और गहरी हो जाती है। दशकों बाद कहानी हमें बांगरा राज्य में ले जाती है, जहां राज विजयेंद्र (जयराम) अपने निर्दयी और निरंकुश पुत्र राजशेखर (गुलशन देवैया) का राज्याभिषेक कर चुका है। खजाने की जिम्मेदारी उसकी योग्य और सुंदर पुत्री कनकवती (रुक्मिणी वसंत) के हाथों में है। इसी बीच, कांतारा की पावन धरती पर बेरेमी (ऋषभ शेट्टी) नामक एक युवा अपने पिछड़े और शोषित कबीले के उत्थान के सपने के साथ आगे बढ़ता है। उसका विचार है कि कांतारा की उपजाऊ धरती से निकले अनाज और औषधीय जड़ी-बूटियों को बेचकर समुदाय आर्थिक रूप से समृद्ध हो सकता है। बेरेमी अपने लोगों के साथ बांगरा के बंदरगाह पर व्यापार करने का प्रयास करता है। लेकिन यहीं से शुरू होता है असली टकराव, बेरेमी के सपनों और शासक के लालच के बीच, और सबसे बढ़कर मानवीय सत्ता तथा अलौकिक शक्तियों के बीच। यह संघर्ष धीरे-धीरे विकराल रूप धारण करता है और कहानी को एक रहस्यमय, रोमांचकारी और दार्शनिक यात्रा की ओर मोड़ देता है।

कैसी है फिल्म?

निर्देशक ऋषभ शेट्टी की ‘कांतारा: चैप्टर 1’ की शुरुआत एक वॉइस-ओवर से होती है, जो दर्शकों को रहस्यमयी बैक स्टोरी की ओर ले जाती है। शेट्टी अलौकिक दुनिया की बुनावट में समय लगाते हैं, जिसकी वजह से शुरुआती हिस्सा थोड़ा खिंचा हुआ महसूस होता है। पहले भाग में उत्पीड़न, भावनाओं और किरदारों की स्थापना पर ध्यान दिया गया है, लेकिन इंटरवल के बाद कहानी अचानक रफ्तार पकड़ती है और दर्शकों के सामने ऐसा अद्भुत विज़ुअल ट्रीट रखती है, जो अंत तक उन्हें बांधे रखता है। हालंकि, फिल्म का रन टाइम लंबा है, मगर मानना पड़ेगा कि ऋषभ शेट्टी की यह दूसरा प्रोडक्शन, एक फिल्‍म के नजरिए से भी ऊंचे पायदान पर नजर आता है।

फिल्म सिर्फ असत्य और सत्य के संघर्ष तक सीमित नहीं रहती, बल्कि अमीर-गरीब, शांति-क्रोध, सभ्यता-जंगल जैसे द्वंद्वों को भी संवेदनशील और रोमांचकारी अंदाज में सामने लाती है। चाहे गोरिल्ला-स्टाइल की फाइट हो, रथ के बेकाबू हो जाने वाला सीन हो या क्लाइमेक्स का धांसू एक्शन सीक्वेंस, हर पल भव्य सिनेमैटोग्राफी, शानदार वीएफएक्स, विशाल सेट्स और महाकाव्य शैली में गढ़े गए एक्शन सीन्‍स से सजा है। इन सबमें बैकग्राउंड स्कोर और गीत न सिर्फ इजाफा करते हैं, बल्कि पूरे अनुभव को और ऊंचाई तक ले जाते हैं।

कैसा है अभिनय?

निर्देशक, लेखक और अभिनेता की तिहरी भूमिका निभाते हुए ऋषभ शेट्टी सचमुच ‘सोने पर सुहागा’ वाली कहावत को साकार कर देते हैं। उनकी परतदार अदायगी हर स्तर पर प्रभावित करती है। एक्शन सीन्‍स में उनकी फुर्ती और तीव्रता दर्शकों को रोमांचित करती है, इमोशनल पलों में उनकी संवेदनशीलता दिल छू लेती है, जबकि देव स्वरूप में अवतरित होने वाले सीन्‍स में उनका रूप बिल्कुल आक्रांत कर जाता है। फिल्म की न्यू एडिशन रुक्मिणी वसंत न केवल अपनी खूबसूरती से स्क्रीन पर चार चांद लगाती हैं, बल्कि अपने किरदार में आए ट्विस्ट से दर्शकों को आश्चर्यचकित भी करती हैं। राजशेखर के रूप में गुलशन देवैया अपनी विशिष्ट शैली से कहानी को मजबूती देते हैं। वहीं, विजयेंद्र की भूमिका में जयराम सुब्रमण्यम अपने अनुभव और गहराई से किरदार को प्रामाणिक बना देते हैं। बाकी के सहयोगी कलाकार भी फिल्म की थीम और भावनाओं के अनुरूप अपने-अपने पात्रों के साथ पूरा न्याय करते हैं। कुल मिलाकर, यह टीमवर्क कहानी को और भी जीवंत और असरदार बना देता है।

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