‘विवादों में उलझना भारत के स्वभाव में नहीं, देश की परंपरा ने भाईचारे पर दिया जोर’, संघ प्रमुख

नागपुर: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत ने नागपुर में राष्ट्रीय पुस्तक महोत्सव के दौरान कहा कि भारत का स्वभाव विवादों में उलझना नहीं है। बल्कि भाईचारे और सामूहिक सद्भाव पर जोर देना है। उन्होंने पश्चिमी देशों की राष्ट्र की अवधारणा से भारत के दृष्टिकोण को अलग बताते हुए कहा कि भारत ‘राष्ट्रवाद’ नहीं, बल्कि ‘राष्ट्रीयता’ शब्द का प्रयोग करता है। जो लोगों के आपसी जुड़ाव और प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व से उपजी है। उन्होंने वैश्वीकरण को लेकर भी अपने विचार रखे और कहा कि भारत ‘वसुधैव कुटुंबकम’ के विचार के साथ वास्तविक वैश्वीकरण लाएगा, जो एक परिवार बनाने पर आधारित होगा, न कि वैश्विक बाजार बनाने पर।
क्या बोले संघ प्रमुख भागवत?
संघ प्रमुख ने कहा कि हमारा किसी से कोई विवाद नहीं है। हम विवादों से दूर रहते हैं। विवाद करना हमारे देश के स्वभाव में नहीं है। एकजुट रहना और भाईचारे को बढ़ावा देना हमारी परंपरा है। उन्होंने कहा कि दुनिया के अन्य हिस्से संघर्षपूर्ण परिस्थितियों में विकसित हुए हैं। भागवत ने कहा कि एक बार कोई मत बन जाने के बाद उससे अलग कोई भी विचार अस्वीकार्य हो जाता है। वे अन्य विचारों के लिए दरवाजे बंद कर देते हैं और उसे ‘वाद’ कहकर पुकारने लगते हैं।
भारत की राष्ट्रीयता पर क्या कहा?
भागवत ने कहा कि यदि राष्ट्र की उस परिभाषा को माना जाए, जो पश्चिमी संदर्भ में समझी जाती है, तो उसमें आमतौर पर एक राष्ट्र की व्यवस्था होती है। इसमें केंद्र सरकार क्षेत्र का संचालन करती है, लेकिन भारत हमेशा से एक ‘राष्ट्र’ रहा है, चाहे अलग-अलग शासन-व्यवस्थाएं रही हों या विदेशी शासन का समय रहा हो। आरएसएस प्रमुख ने कहा कि भारत की राष्ट्रीयता अहंकार या अभिमान से नहीं, बल्कि लोगों के बीच गहरे अंतर्संबंध और प्रकृति के साथ उनके सह-अस्तित्व से उपजी है।
सच्ची संतुष्टि दूसरों की मदद करने से मिलती है
उन्होंने कहा कि हम सब भाई हैं, क्योंकि हम भारत माता की संतान हैं। हमारे बीच धर्म, भाषा, खान-पान, परंपराओं या राज्यों जैसे किसी मानव-निर्मित तत्व के आधार पर विभाजन नहीं है। विविधता के बावजूद हम एकजुट रहते हैं, क्योंकि हमारी मातृभूमि की यही संस्कृति है। उन्होंने उस ज्ञान के महत्व पर भी जोर दिया जो विवेक की ओर ले जाता है। उन्होंने इस बात पर भी बल दिया कि व्यावहारिक समझ और सार्थक जीवन जीना केवल जानकारी रखने से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि सच्ची संतुष्टि दूसरों की मदद करने से मिलती है – यह ऐसी अनुभूति है, जो क्षणिक सफलता के विपरीत जीवनभर बनी रहती है।
एआई पर क्या बोले?
इस बीच, भागवत ने कार्यक्रम में युवा लेखकों से कहा कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) जैसी प्रौद्योगिकी का आगमन रोका नहीं जा सकता, लेकिन इसका इस्तेमाल करते हुए नियंत्रण हमारे पास होना चाहिए और हमें अपनी गरिमा बनाए रखनी चाहिए। उन्होंने कहा कि एआई का उपयोग मानवता के हित में और मनुष्य को बेहतर बनाने के लिए होना चाहिए। आरएसएस प्रमुख ने भाषा और संस्कृति के लिए वैश्वीकरण की चुनौती से जुड़े एक सवाल के जवाब में कहा कि यह फिलहाल एक भ्रम है। वैश्वीकरण का वास्तविक युग अभी आना बाकी है और उसे भारत लेकर आयेगा। उन्होंने कहा कि भारत में शुरू से ही वैश्वीकरण का विचार रहा है, जिसे ‘वसुधैव कुटुंबकम’ कहा जाता है। भागवत ने कहा कि हम वैश्विक बाजार नहीं बनाते, बल्कि हम एक परिवार बनाएंगे और यही वास्तविक वैश्वीकरण का सार होगा। वह युग आना अभी बाकी है, इसलिए वैश्वीकरण को लेकर मन में कोई भय या भ्रम न रखें।(




